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Friday, August 7, 2020

वाराणसी- एक आध्यात्मिक नगरी

'वाराणसी' उत्तर प्रदेश राज्य का प्रशिद्ध नगर है। वाराणसी को प्रायः मंदिरों का शहर,भगवान शिव की नगरी,भारत धार्मिक राजधानी, ज्ञान की नगरी, दीपों का शहर इत्यादि विख्यात नामों से भी पुकारा जाता है। वाराणसी को काशी नाम सेे भी पुकारा जाता हैै।

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वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का मनमोहन दृश्य।
बनारस के दशाश्वमेध-घाट पर गंगा-आरती का मनमोहन दृश्य




"यहीं से सुरू हुई जिंदगी यहीं मोक्ष पाना है,
यह शिव जी की काशी है अब और कहां जाना है"

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित वाराणसी एक ऐसा पवित्र शहर है जिसका नाम हिन्दुओं के तीर्थस्थओं में प्रमुख स्थान पर शामिल है, वाराणसी शहर देश-विदेशों में अपने प्राचीनतम मंदिरों के वजह से प्रसिद्ध है। इस जगह पर आकर यहां के मंदिरों में दर्शन करनें के पश्चात मनुष्य के अंदर एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है, वाराणसी ही ऐसा एकमात्र शहर है जहाँ मंदिरों में दर्शन करने के लिए देश ही नही अपितु विदेश से भी भारी मात्रा में विदेशी श्रद्धालु/पर्यटन आते हैं।


1."काशी विश्वनाथ मंदिर" :-

           
                                                                                                       
बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर
   

काशी को भगवान शिवजी की सबसे प्रिय नगरी कहा जाता है, और साथ ही साथ यह भारत में मौजूद १२ ज्योतिर्लिंगों में से सातवाँ ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर में बाबा विश्वनाथ वाम के स्वरूप में शक्ति की देवी माता भगवती के साथ विराजतें हैं।

 कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 1490ई० में हुई थी, ऐसा माना जाता है कि प्रलय के समय भी यह स्थान यथावत बना रहेगा क्योंकि इस स्थान की सुरक्षा स्वयं भगवान महादेव करते हैं।

महत्वपर्ण लिंक:
० काल भैरव मन्दिर
० दुर्गा माता मंदिर
० संकटमोचन हनुमान मंदिर


आइये जानते हैं विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ :-

1.1 ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल की नोंक पर पूरी काशी बसी हुई है, भगवान शिव काशी के पालनकर्ता और संरक्षक हैं।

 
1.2. काशी नगरी के बारे में एक और बात कही जाती है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तो सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी। काशी नगरी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है, मान्यता है कि भगवान के दरबार में उपस्थिति मात्र से ही मनुष्य को जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।

1.3. काशी विश्वनाथ मंदिर के शिर्ष पर एक सोने का छत्र लगा हुआ है, ऐसा कहा जाता है कि इस छत्र के दर्शन मात्र से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।


1.4. प्राचीन काल में आक्रमणकारियों नें इस मंदिर को कई बार निशाना बनाया है। लेकिन मुग़ल बादशाह अकबर नें इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया, इस बात का पता चलते ही औरंगजेब ने मंदिर को तोड़वा डाला और उसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया।

 लोगो को जब पता चला कि औरंगजेब मंदिर तो तोड़ने वाला है उससे पहले ही लोगों नें भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग को एक कुएं में छिपा दिया। वह प्राचीन कुआँ आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच में स्थित है।


1.5. इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर नें सन 1780 में प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कराया इसके पश्चात 1853 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह नें 1000 कि०ग्रा० शुद्ध सोने द्वारा 15.3 मीटर ऊँचा भव्य सोने का स्तंभ एवं गुंबद का निर्माण करवाया।

1.6. सावन मास भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है, सावन महीनें का आगमन होते ही बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए देश-विदेश से अत्यधिक संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। 

इस माह में शिव जी का जलाभिषेक करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाऐं जरूर पूरी करते हैं। सोमवार के दिन अधिक से अधिक मात्रा में श्रद्धलुओं की भीड़ जमा होती है, इस दिन काशी नरेश महादेव के दर्शन के लिए विशेष तौर पर उपस्थित होते हैं।

'बाबा विश्वनाथ' के आरती की समय-सारिणी :-

1. मंडला आरती प्रातः 03:00 से 04:00 बजे तक
2. भोग आरती दोपहर 12:00 बजे
3. संध्या आरती शाम 07:00 बजे
4. श्रृंगार आरती रात्रि 07:00 बजे
5. शयन आरती रात्रि 10:00 बजे





शिव जी के ज्योतिर्लिंग को दूध, दही, शहद, चरणामृत, भृत, गंगाजल से स्नान कराया जाता है। स्नान के पश्चात ज्योतिर्लिंग पर भांग, धतूरा,आक चढ़ाया जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

2. काल भैरवनाथ मंदिर :-

कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा का विधान है, इस मौके पर देशभर के सम्पूर्ण भैरव नन्दिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। उत्तर प्रदेश के काशी में बाबा भैरव नाथ का मंदिर अत्यधिक प्रशिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि काशी भगवान शिव की प्रिय नगरी है।

परन्तु बाबा भैरवनाथ यहां के कोतवाल है। ऐसी मान्यता ही कि अगर कोई श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को बाबा भैरवनाथ के दर्शन करना अनिवार्य होता है, अन्यथा विश्वनाथ के दर्शन अधूरा माना जाता है। कालाष्टमी के दिन बाबा भैरवनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, इस पूजा को बहुत ही धूमधाम एवं हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। 

3. दुर्गा माता मंदिर:-

वाराणसी केश्वरनगर में स्तिथ यह मंदिर हिन्दू देवी दुर्गा माता को समर्पित है जिसका निर्माण 18वी शताब्दी में बंगाल की महारानी ने करवाया था। 

दुर्गा माता का यह मंदिर उत्तर भारत के नागराज शैली में बना हुआ है, ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर स्थापित मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। यहाँ पर वर्गाकार में एक तालाब भी बना हुआ है जो "दुर्गाकुण्ड" नाम से जाना जाता है, यहाँ पर हर साल नवरात्रि पर्व पर अत्यधिक मात्रा में श्रद्धालु आतें हैं।

4. ललिता गौरी मंदिर:-

बनारस के सम्पूर्ण मंदिरों में से ललिता देवी गौरी का भी महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर प्रशिद्ध विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित है।यह मंदिर देवी पार्वती के अन्नपूर्णा रूप को समर्पित है जो भोजन की देवी के रूप में मानी जाती हैं। अगर आप बनारस भ्रमण के लिए आते हैं तो ललिता गौरी माता के दर्शन अवश्य करें।

5. संकटा देवी मंदिर:-
 
संकटा देवी मंदिर वाराणसी में सिंधिया घाट के समीप स्थित है। इस मंदिर को बनारस के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है, इस मंदिर के अंदर माता संकटा देवी की एक विशाल एवं भव्य मूर्ति बनी हुई है, जिसमें संकटा देवी एक शेर पर सवार है।

6. संकटमोचन हनुमान मंदिर:-

संकटमोचन का शाब्दिक अर्थ होता है दुखों को हरने वाला। श्री पवनपुत्र हनुमान जी का यह मंदिर बनारस के प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है। यह माता दुर्गा के नए मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में ही स्थित है। इस मंदिर की स्थापना बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के संस्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी करवाया था। 

यहाँ पर हर वर्ष हनुमान जयंती बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है। जब भी कोई यात्री/श्रद्धालु बनारस की यात्रा के लिए आता है तो वह हर समस्याओं/कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए एक बार संकट मोचन मंदिर में जरूर आता है। हनुमान जी के दर्शन मात्र से मनुष्य को सभी कठिनाइयों से लड़ने के लिए शक्ति मिलती है, श्रद्धालुओं को दृढ़ विश्वास होता है कि पवन पुत्र हनुमान अपनी कृपा दृष्टि सदैव बनाये रखेंगे और अपने भक्तों की रक्षा करेंगे।

7. तुलसीदास मंदिर:-

तुलसीमानस मंदिर को शान्ति का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव जी,राम जी,सीता माता,हनुमान जी, तुलसीदासजी,और माता अन्नपूर्णा देवी जी की मूर्तियां स्थापित है, यह सम्पूर्ण मंदिर सफेद संगमरमर का बना हुआ है।और मंदिर की दीवारों पर रामचरितमानस की श्लोक की पंक्तियाँ लिखीं गयी हैं।

8. भारत माता मंदिर:-

 भारत माता मंदिर का निर्माण 1926 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में किया गया था, जिसका उद्घाटन सन 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के करकमलों द्वारा किया गया था।इस मंदिर में संगमरमर के द्वारा एक बड़ा सा भारत माता का मानचित्र बनाया गया है। 

इसका उद्घाटन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपने संबोधन में कहा था कि "इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नही है, मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी जाति,धर्मों के लोगों के लिए यह एक सार्वदेशिक मंच का रुप ग्रहण करेगा और देश में धार्मिक एकता, शान्ति एवं आपसी प्रेम की भावना को बढ़ाने में विशेष योगदान देगा। 

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बनारस अपने भव्य मंदिरों के लिए तो विख्यात है ही साथ ही साथ यहां के घाटों के वजह से भी बहुत प्रसिद्ध है, यहां पर अनेक प्रकार के घाट बने हुए हैं। 
आइए जानते है बनारस नगरी के प्रमुख घाटों के बारे में..

अगर आप बनारस यात्रा के लिए जा रहे हैं और यहां के घाटों पर नही घूमे तो आप की यात्रा पूरी नही कही जायेगी। यहां के घाट कलाकारों, फ़िल्म-निर्माताओं, लेखकों एवं संगीतकारों के लिए सदियों से प्रेरणास्रोत रहे हैं। 

84 घाटों के चलते इसे घाटों का शहर भी कहा जाता है, काशी में कई मंदिर और अखाड़े मौजूद हैं, इस घाट पर स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है।

पुरानी मान्यता है कि यहां के अनुसार घाट में स्नान करने से मनुष्य को अपने सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। वाराणसी के अनेक घाटों का पुनर्निर्माण सन 1700ई० में किया गया जब इस शहर पर मराठा राजाओं का शासक था। 

वर्तमान में दिखाई देने वाले घाटों का संरक्षक मराठा, होल्कर, पेशवा, सिंधिया एवं भोंसले राजाओं ने किया था। यहां में अनेक घाट धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बनाए गए हैं।

इन सभी घाटों में दशाश्वमेध घाट सबसे प्रशिद्ध घाट है। मणिकर्णिका घाट का उपयोग अंतिम संस्कार के लिए किया जाता है। घाटों के सबसे अंतिम छोर पर "अस्सी घाट" स्थित है। यह घाट सुबह किये जाने वाले योग सत्रों के लिए प्रसिद्ध है। दशाश्वमेध घाट को एक विशेष प्रकार की ख्याति प्राप्त है क्योंकि संध्या कालीन में होने वाली "गंगा आरती" इसी घाट पर होती है।

ये सभी घाट हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र मानें जाते हैं। इन घाटों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय भव्य आरती का आयोगन किया जाता है। काशी में दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, हरिश्चंद्र घाट, तुलसीघाट, सिंधिया घाट, आदि घाट बहुत ही प्रशिद्ध हैं। परंतु मणिकर्णिका घाट सबसे प्रशिद्ध घाट है। 


1.दशाश्वमेध घाट:- 

पावन नगरी बनारस के सबसे प्राचीनतम घाटो के से एक दशाश्वमेध घाट है। ऐसा कहा जाता है कि सन 1740ई० में बाजीराव पेशवा(प्रथम) ने इस घाट का पुनर्निर्माण कराया था, कुछ वर्ष पश्चात 1774ई० में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका परिपूर्ण निर्माण करवाया। यह घाट "विश्वनाथ मंदिर" के समीप ही स्थित है। 

यह घाट गंगा आरती के लिए सम्पूर्ण देश-विदेश में विख्यात है। संध्या कालीन में जब पुजारियों द्वारा गंगा जी के आरती का आयोजन किया जाता है तो इस भव्य एवं आस्था से ओतप्रोत दृश्य को देखनें के लिए घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है हर कोई इस मनमोहक दृश्य को अपने स्मृति पटल में सदैव के लिए कैद कर लेना चाहता है। गंगा आरती के समय होने वाले शंखनाद, घंटियों और झांझ के बजने की आवाजों तथा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच ऐसा प्रतीक होता है जैसे सम्पूर्ण बनारस श्रद्धा और आस्था से परिपूर्ण हो गया हो।

2.मणिकर्णिका घाट :- 

काशी के 84 घाटों में से मणिकर्णिकाघाट घाट की सबसे अहम भूमिका है, क्योंकि इस घाट को स्वयं भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती जब इस स्थान पर आगमन किए, तब शिव ने अपने चक्र से गंगा नदी के किनारे एक कुण्ड का निर्माण किया। जब शिव जी इस कुण्ड में स्नान करने के लिए गए तब उनके कान की बाली यहां गिर गई, जिसके बाद इस कुण्ड का नाम मनीकर्णिका कहा गया । इस कुण्ड के किनारे स्थित घाट को मणिकार्णिका घाट कहा जाने लगा। यह कथित रूप से तार्किकता है कि चाहें कोई आम मनुष्य हो या अहम यह घाट सभी मानव जाति के जीवन को सत्य से परिचित करता है।

इसके अलावा मणिकर्णिका घाट पर चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन वैश्यों का विशेष नृत्य होता है,यहां इं लोगों को नृत्य के लिए जबरन का पैसे देकर नहीं बुलाया जाता है, बल्कि मिलो दूर से लोग अपनी मर्ज़ी से नृत्य करने के लिए आती है। कहते है कि ऐसा करने से इस जीवन से मुक्ति मिलती है,सत्थ ही उन्हे इस बात का दिलासा होता है कि उन्हें इस बात का दिलासा होता है कि की उन्हें अगले जन्म में इस वैश्या जीवन शैली को सामना नहीं करना पड़ेगा। यहां नृत्य करना वे अपना खुशनसीबी समझती हैं।

ऐसा सुनने पर आपको कुछ अटपटा सा लगता होगा कि शमशान जैसी शांत जगह पर ये लोग कैसी नृत्य प्रस्तुत कर सकती हैं, लेकिन हम आपको यह बता दे कि यह प्रथा कई वर्षों से चलती आ रही है । बाबा मथान के मंदिर बनने के बाद वहां के एक राजा ने कार्यक्रम का अयोजन करवाया था, जिसके लिए देश-विदेश से कई कलाकरों को नृत्य प्रस्तति के लिए आमंत्रण दिए गए थे। लेकिन शमशान जैसी जगह पर नृत्य प्रस्तुत को लेकर सभी कलाकार भयभीत थे,ऐसे में राजा को अपने कहे हुए वचन को पूरा करना था, तब राजा को वैश्याओं को नृत्य के लिए बुलाने का सुझाव दिया, राजा ने इस परामर्श को मानते हुए वेश्याओं को नृत्य के लिए बुलाने का आदेश दिया। राजा के द्वारा आमंत्रण पाकर वे बहुत खुश हुई, और उन्होने अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया। उसी कल से यह प्रथा अब तक चली आ रही है। यह प्रथा बनारस में प्रसिद्ध है,कई देश विदेश के सैलानी यहां आकर इस कार्यक्रम को देखते हैं।

मणिकर्णिका घाट का महत्व:-
हिन्दू धर्म में इस घाट को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि चिता का दाह संस्कार करने के पश्चात उस चिता की आग निरंतर जलती रहती हैं। मणिकार्णिका घाट पर किसी व्यक्ति का दाह- संस्कार करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है एवम् व्यक्ति सदैव स्वर्ग को प्रस्थान करता है। 


वाराणसी भ्रमण करने का उपयुक्त समय :-

जानिए बनारस के ऐतिहासिक घाटों को, पवित्र गंगा को, बनारस की गलियों को और खाइए शाही पकवान को, लुत्फ उठाइए मशहूर बनारसी पान का, जानिए पवित्र सारनाथ की काहनी को, सुनिए बनारस की आरती और दीजिए मन को शांती और जानिए बनारस की असली संस्कृति को

अगर आप भी आध्यात्मिक शहर बनारस के लिए प्रस्थान करने का विचार कर रहे हैं तो आप भी आस्था से परिपूर्ण नगरी में पधार सकते हैं, वाराणसी को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच बसे तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। इस शहर का अनुभव आपके अंतर्मन को बदल कर रख देगा। 

परन्तु अब आप के चित्त में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि वाराणसी भ्रमण करने का सबसे अच्छा और अनुकूल समयावधि क्या है, तो हम आपको बता देंते है कि इसके लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से लेकर मार्च तक का महीना है, अगर आप इस महिनों के अंतराल में वाराणसी की यात्रा करने के लिए निकलते है तो आपकी यात्रा क़ाफी अच्छी और सुकून भरी रहेगी। इस दौरान वाराणसी में नवंबर के महीने में हर साल पाँच दिवसीय "गंगा महोत्सव" का कार्यक्रम बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, यह महोत्सव वहां आने वाले सैलानियों/पर्यटकों के प्रति आकर्षण का केन्द्र रहता है। 

पवित्र शहर काशी,पवित्र नदी गंगा, और महादेव यानी भगवान शिव के संगम के कारण मोक्षदायिनी शहर के नाम से जाना जाता है। यह शहर हिंदुओं, बौद्ध और जैन समाज के धार्मिक, आध्यात्मिक विचारों और मान्यताओं का गढ़ रहा है। इसलिए इसे प्राचीन शिक्षा, धर्म,दर्शन,योग,आयुर्वेद, ज्योतिष शास्त्र, कला-साहित्य, आध्यात्मिकता का सांस्कृतिक केंद्र भी कहा जाता है।

यहां पर बनी बनारसी सिल्क की साड़ियां और मख़मली कालीन इस नगर की एक अलग ही छाप छोडती है। सुबह सुबह बनारस के मंदिरों में होने वाली पूजाओं में सम्मिलित होने से आध्यात्मिक स्तर पर मन और चित्त को शुद्ध करने वाला अनुभव होता है।

वाराणसी पहुँचने के लिए उपयुक्त संसाधन:-

1. हवाई मार्ग माध्यम के द्वारा :- 

अगर आप हवाई मार्ग द्वारा बनारस यात्रा के लिए योजना बना रहे हैं तो आप देश के किसी भी प्रमुख शहर से ऑनलाइन टिकट बुक कर सकते हैं। वाराणसी के लाल बहादुर हवाई अड्डा भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से सम्पर्क में है जिसके अंतर्गत आपको किसी भी तरह की असुविधा का सामना नही करना पड़ता है।

2. रेलवे के द्वारा :- 

वाराणसी जंक्शन भारत के सभी प्रमुख शहरों के रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।आप दिल्ली, मुम्बई, और भारत के सभी बड़े शहरों से वाराणसी आवागमन करने के लिए बहुत ही आसानी से ट्रेन टिकट ले सकते हैं। वाराणसी के आगमन के पश्चात शहर के भ्रमण हेतु आप टैक्सी या कैब किराये पर ले सकते हैं।

3. बस डिपो द्वारा :- 

अगर आप वाराणसी प्रस्थान के लिए बस के द्वारा यात्रा करना चाहते है तो आप दिल्ली और आसपास के सभी क्षेत्रों से आसानी से बस का साधन मिल जायेगा।

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